मान्यता है कि भगवान शिव मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं। श्रद्धालुओं का उनके प्रति अपार प्रेम उन्हें मोक्ष के द्वार तक ले जाता है। यह दुनिया भर में मौजूद हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए एकमात्र निर्विवाद सत्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी हमेशा से ही शिव की पसंदीदा स्थली रहा है। उन्हें इस स्थान से बेहद लगाव था। ऐसा माना जाता है अगर वाराणसी में कोई अपना देहत्याग करता है, तो उसे जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
काशी दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है और इसे शिव की नगरी के रूप में जाना जाता रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर न केवल हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह इस धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थलों में से एक है। इतिहास में मौजूद तमाम विविधताओं और टकराव की परिस्थितियों के बावजूद काशी विश्वनाथ निर्विवाद रूप से मुक्तिदाता हैंं। हिन्दू धर्मावलम्बियों के श्रद्धेय और आध्यात्मिक स्थानों में से एक काशी विश्वनाथ का मंदिर वास्तुशिल्प का एक नायाब उदाहरण है। यह आध्यात्मिक तो है ही, चमत्कारिक भी है। आइए काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कुछ तथ्यों पर एक नजर डालते हैं जिनके बारे में अधिकतर लोगों को शायद ही पता हो।
1. काशी का इतिहास
वाराणसी यानि काशी का जिक्र उपनिषदों और पुराणों में किया गया है। काशी शब्द की उत्पत्ति ‘कास’ शब्द से हुई, जिसका अभिप्राय है चमक। इस बात के साक्ष्य मिलते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना 1490 में हुई थी। काशी नगरी कई प्रसिद्ध और प्रतापी राजाओं के शासन का गवाह रहा है। हम में से कुछ शायद ये जानते होंगे कि काशी में अल्प समय के लिए बौद्ध शासकों ने भी शासन किया था। गंगा नदी के तट पर बसे इस आध्यात्मिक शहर ने न केवल अपना उत्कर्ष देखा है, बल्कि अत्याचार, अन्याय और विनाश की कई कथाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं। काशी विश्वनाथ के मंदिर को कई बार हमलों का शिकार होना पड़ा था। इस खूबसूरत मंदिर को तबाह करने में मुगल शासकों की भी महती भूमिका रही थी। काशी विश्वनाथ का वास्तविक मंदिर जिसका मुगलों ने विध्वंस कर दिया था, पुननिर्माण किया गया। यह इस शहर की असीम शक्ति, साहस और सहजता ही है कि इसने हर हमले का डटकर सामना किया है और अपने अस्तित्व को कायम कर रखा है।
2. मुगल सम्राट अकबर ने मूल मंदिर के निर्माण की अनुमति दे दी थी। इसका निर्माण भी किया गया, लेकिन बाद में औरंगजेब ने इसे ध्वस्त कर दिया।
3. रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर का आखिरी बार पुनर्निर्माण और नवीनीकरण करवाया था। उन्होंने न केवल मंदिर के नवीनीकरण की जिम्मेदारी ली थी, बल्कि इसके पुनर्निमाण के लिए काफी धनराशि दान की। बाद में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त कर उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण करा दिया। मंदिर के अवशेष आज भी मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर उत्कृष्ट और जटिल कलात्मक कला के रूप में गोचर है। ऐसा माना जाता है कि रानी अहिल्याबाई के सपने में भगवान शिव आए और तभी उन्होंने इस मंदिर के नवीनीकरण का उत्तरदायित्व लिया था। यह 18वीं सदी की घटना है।
4. भगवान भोले शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रतिष्टित है।
5. मंदिर के शीर्ष पर एक सुनहरा छत्ता है। ऐसा माना जाता है कि इस सुनहरे छत्ता के दर्शन के बाद मांगी गई हर इच्छा पूरी हो जाती है।
6. मंदिर का वास्तुशिल्प
इंदौर की रानी द्वारा किए गए मंदिर के पुनर्निर्माण के उपरांत, महाराजा रंजीत सिंह ने इस मंदिर के शिखर के पुनर्निमाण के लिए लगभग एक टन सोना दान दिया था। काशी विश्वनाथ मंदिर की मीनारों को सोने से मढ़वाया गया। इन मीनारों की ऊंचाई लगभग 15.5 मीटर है। इस मंदिर में एक आतंरिक पवित्र स्थान है, जहाँ फर्श पर चांदी की वेदी में काले पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है। यहाँ दक्षिण में एक कतार में तीन धार्मिक स्थल स्थित हैं। मंदिर के इर्द-गिर्द, यहाँ पांच लिंगों का एक समूह है, जो संयुक्त रूप से नीलकंठेश्वर मंदिर कहलाता है।
7. दुनिया भर के श्रद्धालुओं का जमावड़ा
काशी विश्वनाथ मंदिर के कपाट साल भर खुले रहते हैं। दुनिया भर से भक्त भगवान का दर्शन करने के लिए यहां आते हैं। इस मंदिर में पांच प्रमुख आरतियाँ होती है। अगर आपने कभी यहाँ की आरती को देखा है तो यकीनन आप इस विस्मयकारी दृश्य को भूल नहीं सकते।
मंगला- सुबह के 3 बजे
भोग- सुबह 11: 30 बजे
सप्त ऋषि आरती- शाम 7 बजे
श्रृंगार / भोग आरती- रात 9 बजे
शयन आरती- रात 10: 30 बजे
8. प्रकाश की पहली किरण
ऐसा माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब प्रकाश की पहली किरण काशी की धरती पर पड़ी थी। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव काशी आए थे और यहां कुछ समय तक निवास किया था। भगवान शिव को इस शहर और इसके निवासियों का संरक्षक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि काशी में नौ के नौ ग्रह अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकते। वह सब भगवान शिव के अधीन है। ऐसा प्रचलित है कि शनि, शिव को ढूँढ़ते हुए काशी आए थे और मंदिर में साढ़े सात सालों तक प्रवेश नहीं कर सके। जब कभी भी आप काशी की यात्रा के लिए जाएंगे, आपको विश्वनाथ मंदिर के बाहर शनिदेव के मंदिर के दर्शन होंगे।
9. ‘ज्ञानवापी’ कुंए के अवशेष
ऐसा कहा जाता है कि जब औरंगज़ेब द्वारा मंदिर को ध्वस्त करने की खबर लोगों तक पहुंची, तो विनाश से शिव की प्रतिमा को बचाने के लिए उसे कुँए में छिपा दिया गया। यह कुआँ आज भी यहाँ मस्जिद और मंदिर के बीच में खड़ा है। जब कभी भी आप अगली बार इस राजसी स्थल पर प्रार्थना के लिए जाएं यहाँ जाना न भूलें।
10. ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस मंदिर में सच्ची श्रद्धा से शिवलिंगम के दर्शन करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
11. अपनी सुगम यात्रा बुक करे और और डाक द्वारा प्रसाद पाए
काशी विश्वनाथ मंदिर में पुजारियों और पंडों के आक्रामक व्यवहार की वजह से श्रद्धालुओं को दिक्कत होती है। एक अच्छी खबर यह है कि अब इस मंदिर की अपनी वेबसाइट है, जिसमें मंदिर से सम्बन्धित हर जानकारी मौजूद है। आप अपना टोकन बुक कर, लम्बी कतारों में लगने से बच सकते हैं। अगर आप विदेश में रहते हैं तो भी आप एकांत में वेबसाइट पर भगवान के लाइव दर्शन कर सकते है। यहाँ अपने नाम से पूजा कराने की भी व्यवस्था है और प्रसाद डाक द्वारा आप तक पहुँच जाएगा।