IPS Pankaj Kumawat and Amit Kumawat: यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। हर कोई इसे पास करने का सपना देखता है, लेकिन इसे सिर्फ़ कुछ चुनिंदा लोग ही पूरा कर पाते हैं। यहां तक कि इसे पास करने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है।
इसके साथ ही, इस परीक्षा में प्रायः सभी विषयों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। जिस व्यक्ति को यूपीएससी परीक्षा में सफलता मिलती है, उसकी खबर तुरंत उसके आसपास के क्षेत्रों में फैल जाती है। साथ ही, उन सफल उम्मीदवारों को उनकी रैंक और प्राथमिकता के आधार पर IAS, IPS, IFS आदि पदों का चयन किया जाता है।
आज की कहानी दो सगे भाइयों के एक साथ IPS बनने की है:
यह कहानी आईपीएस पंकज कुमावत (IPS Pankaj Kumawat) और अमित कुमावत (IPS Amit Kumawat) की है। पंकज और अमित कुमावत एक साधारण परिवार से हैं और उन्होंने अपने जीवन में आर्थिक तंगी के साथ जूझना पड़ा। उनके पिता सुभाष कुमावत एक दर्जी का काम करते थे और मां राजेश्वरी देवी उनके साथ मिलकर तुरपाई कारोबार में सहायता करती थीं। इनका जीवन बहुत संघर्षपूर्ण था, लेकिन वे अपने बच्चों को उनकी हैसियत से ऊपर उठाकर पढ़ाई करवाने के लिए कठिनाइयों का सामना किया। उनके बच्चे ने मन से पढ़ाई की और अपनी मेहनत के फलस्वरूप उन्हें सफलता मिली। दोनों भाई एक साथ पढ़ाई करके अधिकारी बनने का सपना देखा और उसे साकार किया। पंकज और अमित ने एक साथ यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा पास की।
IPS भाइयों की रैंक
झुंझुनूं के साधारण दर्जी परिवार के इन बेटों को दूसरी कोशिश में सफलता मिली। उन्होंने लगातार दो बार यूपीएससी परीक्षा दी और बिना किसी कोचिंग के पास होने का प्रमाण दिखाया। 2018 में पंकज को 443वीं और अमित को 600वीं रैंक मिली। इसके बाद पंकज को आईपीएस और अमित को आईआरटीएस कैडर मिला। फिर से मेहनत करते हुए, 2019 में अमित को 423वीं और पंकज को 424वीं रैंक मिली। इस बार दोनों को आईपीएस कैडर मिला। पंकज पहले से ही आईपीएस थे, जबकि अब अमित भी आईपीएस बन गए।
आईपीएस पंकज कुमावत और उनके भाई अमित कुमावत की शिक्षा शुरुआती तौर पर झुंझुनूं के जिला मुख्यालय के पास स्थित भारती विद्या विहार स्कूल से हुई। वहां वे दसवीं तक पढ़े। उसके बाद झुंझुनूं अकादमी से 12वीं पास हुए और आगे की पढ़ाई वे दिल्ली के आईआईटी से की।
मीडिया को दिए इंटरव्यू में पंकज और अमित ने बताया था,
हमारे लिए पढ़ाई मुश्किल नहीं थी, माता-पिता के लिए पढ़ाई का खर्चा उठाना मुश्किल था। वे हम दोनों भाइयों से हमेशा कहते पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना है। हम हमेशा साथ देंगे।
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