जब हम सालों बाद किसी अपने से मिलते हैं, तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है और खासतौर पर जब कोई ऐसा व्यक्ति जो हमारे बहुत करीब हो, उससे मिलकर तो जो ख़ुशी मिलती है, उसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है। ऐसी ही एक घटना हुई हरदोई के सांडी थाना इलाके के सैतियापुर गांव के मजरा फिरोजापुर में, जो आंखों में आंसू ले आएगी। यहाँ एक परिवार में रिंकू उर्फ गुरप्रीत सिंह पिता की डांट खाकर साल 2007 में घर से निकल गया था और अब 14 साल बाद हरदोई अपने घर लौटा तो सारा परिवार प्रफुल्लित हो उठा और उस परिवार में मानो किसी त्यौहार जैसा माहौल दिखाई दे रहा था।
हम बात कर रहे हैं सैतियापुर के मजरा फिरोजापुर के रहने वाले सरजू के परिवार की। सरजू एक किसान हैं और उनकी पत्नी सीता गृहिणी हैं। दरअसल, करीब 14 सालों पूर्व सरजू व सीता का एक बेटा जिसका नाम रिंकू था, वह घर पर कुछ कहे पिता की डांट की वजह से अंदर नए कपड़े और बाहर पुराने कपड़े पहन कर चुपचाप घर से कहीं चला गया था। रिंकू के माता पिता और रिश्तेदारों सभी ने उसे बहुत खोजा परंतु लापता रिंकू का कहीं पता नहीं चला। आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता अपने बेटे के न मिलने पर उसके साथ कुछ अनहोनी मानकर चुप-चाप शांत बैठ गए। इसके बाद सारे परिवार ने भाग्य का लिखा मानकर इस बात को स्वीकार कर लिया था।
बदले हुए नाम और पहचान के साथ वापस आया बेटा
फिर एक दिन गत शनिवार की रात को अचानक ही रिंकू अपने गाँव में वापस आया लेकिन इस बार उसका नाम और सब बदल चुका था, परन्तु उसकी माँ ने उसे देखते ही पहचान लिया और बेटे रिंकू को गले से लगाकर बहुत देर रोती रहीं। रिंकू ने ना सिर्फ़ अपना नाम बदला था बल्कि, परिवार से दूर रहकर अपनी एक पहचान भी बना ली थी। अगर 14 सालों से पंजाब में रहा करता था, वहीं रहते हुए उसने कुछ ट्रक भी खरीद लिए थे।
एक बार उसका एक ट्रक धनबाद में दुर्घटना ग्रस्त हो गया था, इसलिए वह अपनी लग्जरी कार में बैठकर धनबाद जा रहा था, तभी मार्ग में हरदोई गाँव आया तो उसे पहले का सब याद आ गया। यद्यपि जब वह गया तब काफ़ी छोटा था, इस वज़ह से उसे इतने सालों बाद अपने पिता का नाम तो याद नहीं रहा था, परन्तु अपने गाँव में रहने वाले एक व्यक्ति सूरत यादव का नाम उसे याद रह गया था। जब वह अपने गाँव पहुँच जाए तो सीधा सूरत यादव के पास ही गया। सूरत यादव ने भी उसे जल्दी ही पहचान लिया और उसे उसके परिवार के पास ले गया।
रिंकू बन चुका था गुरुप्रीत
रिंकू जब वापस आया तो गुरुप्रीत बन चुका था और उसकी वेशभूषा रहन-सहन सभी सरदारों जैसी ही हो गई थी। यहाँ तक की वह सरदारों की तरह ही सिर पर पगड़़ी भी बाँधने लग गया था। हालांकि रिंकू एक अनुसूचित जाति से सम्बंध रखता है लेकिन फिर उसने अपना नाम और रहन-सहन बदल कर सरदारों की तरह कर लिया और गुरुप्रीत सिंह बन गया। गोरखपुर के रहने वाले एक परिवार, जो अब लुधियान में रहा करता था, उस परिवार की पुत्री से ही गुरुप्रीत (रिंकू) की शादी हो गयी थी। जब सरजू और सीता को पता चला कि रिंकू की शादी हो गई है तो वह बहुत प्रसन्न हुए।
एक सरदार जी ने की थी मदद
रिंकू यानी गुरुप्रीत को जब बचपन में पढ़ाई की वज़ह से घर से डांट फटकार पड़ी तो वह अपने नए कपड़ों के ऊपर ही पुराने कपड़े पहन कर घर से चला गया था। घर से निकलकर वह किसी ट्रेन में बैठ गया और लुधियाना पहुँचा। लुधियाना में उनकी मुलाकात एक सरदार जी से हुई, उन सरदार जी ने ही उसकी मदद की तथा उसे अपनी एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम पर रख लिया। उस ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करने के दौरान ही गुरप्रीत ने ट्रक चलाना भी सीख लिया। इसके बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया, फिर उसे ख़ुद अपने ट्रक भी खरीद लिए और आज तो वह लग्जरी कार का भी मालिक बन गया है।
घरवालों ने कहा-अब छोड़कर मत जाना
रिंकू की आयु अभी 26 साल है। उसके वापस आने पर सारा परिवार बहुत प्रसन्न है और यह होली का उत्सव उनके लिए सबसे ज़्यादा खुशनुमा त्यौहार बन गया है। रिंकू की माँ सीता अपने बेटे को इतने सालों बाद देख कर ख़ुशी से ओतप्रोत हैं और उससे कहती है कि तुम चाहे जो भी काम करते हो, परंतु जिस तरह से तुम पहले चले गए थे वैसे फिर कभी मत जाना। गुरप्रीत भी बहुत सालों बाद अपने घर आया था इसलिए, भावुक हो गया और अपने काम की फिकर छोड़कर वहीं रुक गया था। यद्यपि काम की वज़ह से बाद में देर रात ही उन्हें जाना पड़ा था। गुरुप्रीत अपने परिवारजनों से मिलकर बहुत ख़ुशी का अनुभव कर रहा है। वह चाहता है कि अब वह अपने माता पिता के साथ ही रहे।