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37 साल पहले सरनाम ने भाला फेंक में देश को दिलाया था गोल्ड मेडल, आज जी रहे गुमनामी की जिंदगी

इस साल ओलंपिक 2020 में देश को गोल्ड मेडल दिलाने वाले नीरज चोपड़ा पूरी दुनिया से सुर्खियां बटोर रहे है। गोल्ड मैडल जीतकर नीरज ने देश का नाम रोशन किया है और इन्हे इसके इनाम स्वरूप करोड़ों की राशि मिल रही है। ऐसे में एक खबर चौका देने वाली आयी है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, नीरज से पहले 1984 में भी सेना का एक सूबेदार मेजर सरनाम सिंह भाला फेक यह खेल में गोल्ड मेडल अपने देश के नाम कर चुका है। उन्होंने साल 1984 में नेपाल में आयोजित दक्षिण एशियाई खेलों में भाला फेंक गोल्ड मेडल जीता था।

देश की सेवा के लिए आर्मी में हुए थे भर्ती

सरनाम सिंह साल 1976 में महज़ 20 साल की उम्र में राजपूत रेजीमेंट भर्ती हुए थे, उनकी लंबाई 6 फीट 2 इंच थी इसलिए सेना में रहते हुए वह चार साल तक बतौर बास्केट बॉल प्लेयर गेम खेलते रहे।

हालांकि बाद में सरनाम सिंह के एक साथी जवान उन्हें एथलीट बनने की सलाह दी, क्योंकि उनकी कद-काठी और शारीरिक बल बेहतरीन था। अपने साथी के बात मानते हुए सरनाम सिंह ने बास्केट बॉल छोड़कर भाला फेंकने की ट्रेनिंग शुरू कर दी।

भाले में बनाया था एक नया राष्ट्रीय रिकार्ड

दरअसल, मूल रूप से आगरा के फतेहाबाद ब्लाक के छोटे से गांव अई के रहने वाले हैं। वह सेना में अधिकारी रह चुके हैं, कुछ सालों पहले ही उनका रिटायरमेंट हुआ है। वह सेना के कोटे से कई अंतराष्ट्रीय मैचों में मेडल जीत चुके हैं। वह 20 साल की उम्र में साल 1976 में सेना की राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। उनके सेना के साथियों ने सरनाम की कद काठी देकर उन्हें एथलीट खेलों में हिस्सा लेने की सलाह दी थी। जिसके बाद वह भाला फेंकने का अभ्यास करते रहे। 1982 के एशियाई खेलों के में उन्होंने हिस्सा लिया और वह पहली बार में ही चौथे स्थान पर रहे। दो साल बाद फिर 1984 में नेपाल में आयोजित पहले पहले दक्षिण एशियाई खेलों में भाला फेंका और गोल्ड मेडल जीत लिया। इतना ही नहीं वह गुरुतेज सिंह के 76.74 मीटर के राष्ट्रीय रिकार्ड को तोड़ चुके हैं। उन्होंने 78.38 मीटर भाला फेंक कर नया बनाया था।

ट्रेनिंग में लगी चोट, फिर भी जीत लिया गोल्ड मेडल

साल 1982 में एशियाई खेलों के लिए खिलाड़ियों का ट्रायल शुरू हुआ, जिसमें सरनाम सिंह ने भाला फेंक कर चौथा स्थान प्राप्त किया था। लेकिन ट्रेनिंग के दौरान उनके हाथ में चोट लग गई, जिसकी वज़ह से उन्हें लगभग 6 महीने तक भाला फेंकने से परहेज करना पड़ा।

इसके बाद साल 1984 में नेपाल में एशियाई खेलों का आयोजन हुआ, जिसमें सरनाम सिंह ने हिस्सा लिया और देश के लिए भाला फेंक कर स्वर्ण पदक हासिल किया था। हालांकि सरनाम सिंह को यही नहीं रूकना था, इसलिए उन्होंने अन्य तरह के खेलों में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़कर बनाया नया रिकॉर्ड

साल 1985 में सरनाम सिंह ने गुरुतेज सिंह का 76.74 मीटर दूर भाला फेंकने का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़कर अपना एक नया रिकॉर्ड क़ायम किया था। इस दौरान उन्होंने 78.38 मीटर दूर भाला फेंकने का नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था।

इसके बाद साल 1984 में सरनाम सिंह ने मुंबई में आयोजित ओपन नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने भाला फेंकने में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। साल 1985 में जकार्ता में आयोजित एशियन ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में वह पांचवे पायदान पर रहे, जबकि साल 1989 में उन्होंने दिल्ली में एशियन ट्रैक एडं फील्ड प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था।

आज तक नहीं मिला कोई ईनाम

सरनाम सिंह ने भले ही अपनी जवानी में भाला फेंकने में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड स्थापित किया हो और देश के लिए स्वर्ग पदक जीता हो, लेकिन अब तक उन्हें 1 हज़ार रुपए का ईनाम तक नहीं मिला है।

जब उन्होंने साल 1985 में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था, तो मैदान में मौजूद एक कुलपति ने उनके लिए उत्तर प्रदेश सरकार से बातचीत की थी। उन्होंने सरकार से सरनाम सिंह को ईनाम के रूप में 1 हज़ार रुपए देने की बात की, लेकिन आज तक उन्हें पुरस्कार राशि नहीं मिली है।

चंबल के बीहड़ से निकलेंगे कई नीरज चोपड़ा

सरनाम सिंह बताया कि देश में और भी कई नीरज चोपड़ा बन सकते हैं। बस उनको तराशने की जरुरत है। वह जल्द ही ऐसे बच्चों को खोजेंगे जो भाला फेंक में कमाल कर सकते हैं। गांवों में रहने वाले बच्चों में इंटरनेशनल प्रतियोगता जीतने का दम है। जल्द ही चंबल के बीहड़ से नीरज की तरह सोना जीतने वाले खिलाड़ी निकलेंगे। सरनाम ने बताया कि वह भलोखरा गांव के स्कूल में ट्रेनिंग दे रहे थे तब एक ऐसा बच्चा था जो 70 मीटर तक भाला फेंक रहा था। लेकिन उसे संसाधन नहीं मिल सके, आखिर में बच्चे को आपसी रंजिश के चलते गांव छोड़न पड़ा। मैं उसके लौटने का इंतजार कर रहा हूं।

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Punam Kumari
Punam Kumari
लिखना प्रोफ़ेशन भी और हॉबी भी। इसलिए लिखकर ही लोगों के दिलों में बसना चाहती हूं। मुझे लिखना, घूमना-फिरना, फ़ोटोग्राफ़ी बेहद पसंद है।
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