हैदराबाद: देश अभी कोरोना (Coronavirus Second Wave) की दूसरी लहर का कहर झेल रहा है. अस्पतालों में बेड, दवा, ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की किल्लत है. ऐसे में हल्के लक्षणों वाले कोरोना मरीजों को क्वॉरंटीन या होम आइसोलेशन (Home Isolation) के लिए कहा जाता है. लेकिन, बहुत से परिवार एक अकेले कमरे में रहते हैं, जिसके अंदर किचन और कभी-कभी तो शौचालय भी शामिल होता है. ऐसे में अकसर कोविड मरीज़ों को आइसोलेट करने के लिए जगह ही नहीं होती. यही वजह है कि 18 साल के शिव ने खुद ही एक कोविड ‘वार्ड’ बनाने का फैसला किया. उसने अपने घर के परिसर में लगे एक पेड़ की शाखाओं पर बंधे बांस की छड़ियों से एक बिस्तर बना दिया, जहां उसने कोविड के दौरान अपने आपको आइसोलेट कर परिवार से दूर रखा और 11 दिन पेड़ पर आइसोलेशन में बिताए.
नालगोंडा जिले के अंदरूनी इलाकों में बसे एक आदिवासी गांव कोथानंदिकोंडा में रहने वाले शिव हैदराबाद में ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे हैं. कोरोना लॉकडाउन में घर लौटे थे. कोरोना के हल्के लक्षण दिखने के बाद उन्होंने अपना टेस्ट कराया. 4 मई को उनकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई. जिसके बाद गांव के स्वयंसेवकों ने उसे घर पर रहने और अपने परिवार से अलग रहने की सलाह दी. शिव ने ‘द प्रिंट’ को बताया कि वो इस बीमारी से संक्रमित तो थे लेकिन उसके पास इतना बड़ा घर नहीं था जहां वो एक कमरे में खुद को आइसोलेट कर सके. शिव ने बताया कि इस बीच उसे पेड़ पर रहने का विचार आया. उसने बताया कि तब से अब तक वो 11 दिन पेड़ पर गुजार लिए हैं.
शिवा बताते हैं, ‘यहां पर कोई आइसोलेशन सेंटर नहीं था. मेरे परिवार में चार सदस्य हैं. अपने कारण मैं किसी को संक्रमित नहीं कर सकता. ऐसे में पेड़ पर आइसोलेट करने का फैसला किया.’ उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे नहीं पता कि गांव के वॉलंटियर्स ने सरपंच को मेरे पॉज़िटिव होने के बारे में बताया कि नहीं, लेकिन गांव में कोई मेरी मदद के लिए आगे नहीं आया. वो सब वायरस से डरे हुए हैं…वो अपने घरों से नहीं निकल रहे हैं’.
शिवा ने पेड़ पर बल्लियों के सहारे एक गद्दा डाल लिया है. पेड़ उसके घर के आंगन में ही है. शिवा ने एक रस्सी और बाल्टी की सहायता से एक पुली सिस्टम बना लिया था. उसका रोज़ का खाना और दूसरी ज़रूरी दवाएं इसी पुली सिस्टम के ज़रिए भेजी जाती हैं. इस आइसोलेशन वार्ड में अपना अधिकतर समय वो फोन पर बिताते हैं, जिसे वो एक छोटी सी टोकरी में पेड़ से बांधकर रखते हैं.
350 परिवारों का घर है कोथानंदिकोंडा
कोथनंदिकोंडा लगभग 350 परिवार रहते हैं और जिले के अदाविदेवुलपल्ली मंडल के अंतर्गत कई आदिवासी बस्तियों में से एक है. वहा रहनेवालों ने कहा कि उनके गांव से सबसे नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) 5 किमी की दुरी पर है. इमरजेंसी की स्थिति में गांवों के लोगों को अस्पताल के लिए 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.
अनुसूचित जनजाति हॉस्टल को एक आइसोलेशन केंद्र में किया गया तब्दील
बताया जा रहा है कि, ज़िला प्रशासन ने 13 मई को मंडल में स्थित अनुसूचित जनजाति हॉस्टल को एक आइसोलेशन केंद्र में तब्दील कर दिया. लेकिन इन इलाकों में रहने वाले बहुत से लोगों को अभी इसका पता ही नहीं है.