हम सभी की जिंदगी बहुत ही तेजी के साथ बदल रही है, जिसकी वजह से हम दिन ब दिन एडवांस होते जा रहे हैं। लेकिन इस आधुनिक दुनिया में रहते हुए हम 90 के दशक की चीजों से दूर होते जा रहे हैं, जो उस जमाने में बहुत ही मशहूर हुआ करते थे।
ऐसे में आज हम आपको आज से 15 से 20 साल पहले भारत में प्रचलित उन चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हमें बदलते वक्त की याद दिलाने का काम करते हैं। इतना ही नहीं आज के समय में इन पुरानी चीजों को देखना अपने आप बहुत ही रोमांचक अनुभव होता है-
कैरम खेलने का था दौर
आज के समय में ज्यादातर लोग मोबाइल फोन पर PUBG और दूसरे गेम्स खेलते हुए दिखाई देते थे, लेकिन 90 के दशक में जहां चार दोस्त मिल जाते थे वहां कैरम का खेल शुरू हो जाता था। एक साथ बैठकर कैरम खेलना और लंबी बातचीत करने का मजा आज के दौर के बच्चों को शायद कभी समझ नहीं आएगा।
ऑडियो कैसेट्स का खजाना
90 के दशक में मोबाइल फोन का प्रचलन इतना ज्यादा नहीं हुआ करता था, इसलिए उस दौर के युवा ऑडियो कैसेट्स खरीद कर गाना सुना करते थे। इतना ही नहीं उस दौर में कैसेट्स में खुद की आवाज में गाने भी रिकॉर्ड किए जाते थे, लेकिन आज के जमाने में हर कोई म्यूजिक एप के जरिए गाने सुन लेते हैं।
घर की शान होती थी साइकिल
आज से 15-20 साल पहले घर के सामने एक हीरो या एटलस कंपनी का साइकिल जरूर खड़ी होती थी, जो घर की शान बढ़ाने का काम करती थी। उस दौर में बच्चे साइकिल से ही स्कूल और कॉलेज जाया करते थे, जो एक आरामदायक और फिटनेस भरी सवारी होती थी।
आओ खेले वीडियो गेम
आज के जमाने में जहां ज्यदातर बच्चे मोबाइल फोन पर गेम खेलना पसंद करते हैं, वहीं 90 के दशक में बच्चों के पास वीडियो गेम होना बहुत बड़ी बात होती थी। उस दौर के बच्चों के लिए वीडियो गेम किसी स्मार्ट गैजेट से कम नहीं होता था, जिसमें खेलने के लिए हर बच्चा अपनी बारी का इंतजार करता था।
कॉमिक का था जलवा
आज हम सभी मनोरंजन के लिए फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया एप्स का यूज कर रहे हैं, लेकिन 90 के दशक में बच्चों से लेकर युवा हर उम्र का व्यक्ति कॉमिक बुक्स पढ़कर अपना मनोरंजन किया करता था।
इंक पैन से कॉपी पर लिखना
90 के दशक में स्कूल और कॉलेज के बच्चों के पास रिफील वाले पैन नहीं हुआ करते थे, ऐसे में उस दौर के बच्चे इंक वाले पैन का इस्तेमाल किया करते थे। स्याही से भरी एक बोतल हमेशा स्टूडेंट्स के पास हुआ करती थी, जो कॉपियों के साथ कभी कभी यूनिफॉर्म को भी गंदा कर दिया करती थी।
घर की छतों पर होते थे एंटीना
आज हमारे घरों में डिश टीवी या फिर स्मार्ट टीवी गैजेट्स मौजूद हैं, जिसकी वजह से हमारा टीवी देखने का एक्सपीरियंस पूरी तरह से बदल गया है। लेकिन 90 के दशक में टीवी देखने के लिए छत पर लगा एंटीना घुमाना पड़ता था, जो सैटेलाइट्स सिग्नल पकड़ने का काम करता था।
रील वाला कैमरा से फोटो खींचना
90 के दशक में स्मार्ट मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे, इसलिए उस जमाने में फोटो खींचने के लिए रील वाले कैमरा का इस्तेमाल किया जाता था। कैमरा से फोटो खींचने पर रील को साफ करने में लंबा वक्त लगता था, जबकि रील के मंहगा होने की वजह से गिनती की फोटो खींचने का मौका मिलता था।
लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल
आज के समय में हर व्यक्ति के पास फोन होता है, लेकिन आज से 15-20 साल पहले मोहल्ले के कुछ घरों में ही लैंडलाइन फोन हुआ करता था। उस फोन का इस्तेमाल बातचीत करने के साथ साथ मजाक करने के लिए भी किया जाता था, जिसका हर महीने बिल भरना पड़ता था।
किताबें होती थी स्टूडेंट्स की दोस्त
कोरोना महामारी के दौरान स्कूली बच्चों ने ऑनलाइन क्लास के जरिए पढ़ाई करना सीख लिया है, जिसकी वजह से उन्हें किताबों की जरूरत महसूस नहीं होती है। लेकिन 90 के दशक में उसी बच्चे को जिनियस समझा जाता था, जिसके बाद बहुत ज्यादा किताबें हुआ करती थी।
नो पिज्जा बर्गर
90 के दशक के बच्चों के शायद ही पिज्जा और बर्गर के बारे में पता होता था, क्योंकि उस दौर में फास्ट फूड खाने का प्रचलन इतना ज्यादा नहीं था। लेकिन आज के दौर में पिज्जा और बर्गर हर उम्र के बच्चे की पहली पसंद बन चुके हैं।
स्विच पर टांगते थे कपड़े
आज तो आप अपने कपड़े अलमारी या हैंगर में टांकते होंगे, लेकिन 90 के दशक में यह काम स्विच के जरिए पूरा किया जाता था। इस दौर में दीवार पर लगे स्विच पर शर्ट और पैंट लटकाना बहुत ही मामूली बात हुआ करती थी।
लैटरबॉक्स और डाकिया
90 के दशक में शहर से लेकर गांव तक सड़क व चौराहे पर लेटरबॉक्स देखने को मिल जाते थे, जो अपनों से बातचीत करने का सबसे आसान और बेहतरीन विकल्प हुआ करता था। लेटरबॉक्स से लेटर इक्ट्ठा करके डाकिया उन्हें घर तक पहुंचाने आता था, जिसे देखकर हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी।
दरवाजों पर लगाए जाते थे स्टिकर्स
आज के एडवांस जमाने में घर में मौजूद हर चीज बहुत ही स्टाइलिश हुआ करती थी, लेकिन 90 के दशक में घर की अलमारी से लेकर दरवाजों और खिड़कियों पर स्टिकर्स मौजूद हुआ करते थे। यह स्टिकर्स जानवरों से लेकर फूल और पेड़ पौधों के होते थे, जिन्हें दरवाजों पर लगाना घर की खूबसूरती बढ़ाने का काम समझा जाता था।
दिपावली में बल्ब की झालर बनाना
आज से 20 साल पहले दिपावली की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती थी, जिसमें रंगाई, पुताई और साफ सफाई के साथ बल्ब की झालर बनाना भी शामिल था। घर के बच्चे 2-3 दिन तक बल्ब की झालर और लड़ियां लगाने का काम करते थे, जिसके बाद रोशनी में धूमधाम से दिपावली का त्यौहार मनाया जाता था।
खिलाड़ियों के पोस्टर से कमरे को सजाना
90 के दशक में जब कमरे को सजाना होता था, तो सबसे पहले खिलाड़ियों के पोस्टर खरीद लिए जाते थे। उस दौर में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरभ गांगुली के पोस्टर सबसे ज्यादा बिकते थे, जिसे हर उम्र के युवा खरीदना पसंद करते थे।
स्वागतम् वाले खूबसूरत डोरमैट
आज के जमाने में मेहमानों का स्वागत स्वादिष्ट खाने पीने की चीजों से किया जाता है, लेकिन 90 के दशक में मेहमानों का स्वागत अलग अंदाज में किया जाता था। उस दौर में हर घर के दरवाजे पर स्वागतम् लिखे हुए डोरमैट बिछाए जाते थे, जो देखने में बहुत ही आकर्षक लगते थे।
नहीं होते थे नॉन स्टीक बर्तन
90 के दशक में कीचन में खाना पकाने के लिए नॉन स्टीक बर्तनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था, इसलिए खाना जल जाने या चिपक जाने की स्थिति में स्टील के बर्तनों को घिस घिस कर चमकाया जाता था, जिसमें इंसान की शक्ल भी आसानी से दिख जाती थी।
ज्यादा बिल देने वाला बल्ब
आज से 15 से 20 साल पहले हर घर में 90 वॉट वाला एक बिजली का बल्ब लगाया जाता था, जिसकी रोशनी बहुत ही चटक और पीली होती थी। उस एक बल्ब को जलाने पर ही बिजली का बिल बहुत ज्यादा आता था, जबकि आज एक ही कमरे में 2 से 4 एलईडी बल्ब जलाए जाते हैं और बिल भी कम आता है।
स्टोव पर खाना पकाना
90 के दशक में हर किसी के घर पर गैस चूल्हा नहीं हुआ करता था, जबकि सिलेंडर खत्म हो जाने पर दूसरे सिलेंडर का विकल्प भी नहीं होता था। ऐसे में हर घर में स्टोव जरूर होता था, जिसे गैस खत्म होने की स्थिति में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
ये थी 90 के दशक में रोजाना इस्तेमाल होने वाली वह चीजें, जिन्हें आज के दौर देखने का मौका न के बराबर मिलता है।
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