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15 गोलियां खाने के बाद भी दुश्मन से लड़ते रहे योगेंद्र सिंह यादव, महज 19 साल की उम्र में मिला था परमवीर चक्र

भारत में लगभग 60 प्रतिशत युवा फौज का हिस्सा बनना चाहते हैं, ताकि वह देश की रक्षा और हित के लिए कार्य कर सके। ऐसे में भारतीय सेना में हर साल सैकड़ों नौजवान युवाओं की भर्ती की जाती है, जो ट्रेनिंग के बाद कठिन जगहों पर तैनात रहकर देश की सेवा करते हैं।

इसी बीच अगर दुश्मन देश की सेना हमला कर दे या भारत के अंदर घुसपैठ करने की कोशिश करे, तो भारतीय सेना के जवान अपनी जान की बाजी लगाकर भारत माता रक्षा में लग जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ था साल 1999 में, जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल का युद्ध छिड़ गया था और इस जंग में योगेंद्र सिंह यादव ने अपने सीने पर 15 गोलियां खाकर देश को जीत दिलाई थी।

कौन हैं योगेंद्र सिंह यादव?

योगेंद्र सिंह यादव (Yogendra Singh Yadav) का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में स्थित औरंगाबाद अहिर नामक गांव में हुआ था, उनके पिता करण सिंह पहले से ही भारतीय सेना का हिस्सा थे। करण सिंह ने भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1965 और 1971 में हुए युद्धों में कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ से दुश्मन देश की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

ऐसे में योगेंद्र यादव का बचपन पिता की शौर्य गाथा सुनते हुए बीता था, जिसकी वजह से उनके दिल में भारतीय सेना में भर्ती होने की ललक जागृति होने लगी। इसके बाद योगेंद्र यादव साल 1996 में महज 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे, जिसके 3 साल बाद यानि साल 1999 में कारगिल युद्ध शुरू हो गया था।

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कारगिल युद्ध में किया टीम का नेतृत्व

भारतीय सेना से बार बार मुंह की खाने के बावजूद भी पाकिस्तानी सेना कारगिल पर चढ़ाई शुरू कर दी थी, जिसके बाद भारतीय जवानों ने जवाबी कार्रवाई शुरू की। इस युद्ध के दौरान योगेंद्र यादव को टाइगर हिल पर मौजूद तीन खास बंकरों पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और उस वक्त उनकी उम्र महज 19 वर्ष थी।

योगेंद्र यादव जिस ग्रुप को लीड कर रहे थे, उसे घातक प्लाटून नाम दिया गया था। वह अपने सैनिकों के ग्रुप के साथ टाइगर हिल पर कब्जा करने के लिए तकरीबन 90 डिग्री की सीधी में पहाड़ पर चढ़ाई करने लगे, जो बहुत ही मुश्किल और जोखिम भरा काम था।

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लेकिन पाकिस्तानी सेना को हराने के लिए घातक प्लाटून के पास सिर्फ यही एकमात्र रास्ता था, इसलिए योगेंद्र यादव और उनकी टीम ने रात 8 बजे अपना बेस कैंप छोड़ा और रात के अंधेरे में पहाड़ की चढ़ाई शुरू कर दी।

हालांकि घातक प्लाटून को रात के अंधेरे का कुछ खास फायदा नहीं हुआ, क्योंकि कुछ दूरी पर चढ़ाई करने बाद विरोधियों ने उनके ऊपर गोला बारी करना शुरू कर दिया था। ऐसे में उस गोलीबारी में कई भारतीय सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जिसकी वजह से सेना को कुछ समय के लिए अपने ऑपरेशन को रोकना पड़ा था।

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15 गोलियां खाने के बावजूद भी दुश्मन को मार गिराया

इसके बाद 5 जुलाई 1999 को योगेंद्र यादव 18 ग्रेनेडियर्स के समूह के 25 सैनिकों के साथ फिर से आगे बढ़े, लेकिन इस बार भी उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों की गोलीबारी का सामना करना पड़ा। भारतीय सैनिकों ने भी दुश्मन की 1 गोली का जवाब 2 गोलियों से दिया था, जिसकी वजह से लगभग 5 घंटे तक फाइरिंग और बमबारी होती रही।

इसके बाद भारतीय सेना के जवाब अचानक से पीछे हट गए, क्योंकि वह दुश्मन को चकमा देना चाहते थे। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी सैनिक सोच रहे थे कि भारतीय सैनिक उनसे डर कर पीछे हट रहे हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि भारत के जवानों ने युद्ध भूमि में पीठ दिखना कभी नहीं सीखा।

भारतीय सेना के कुछ सैनिक पीछे हट गए थे, जबकि योगेंद्र यादव समेत कुल 7 सैनिक अभी भी टाइगर हिल पर मौजूद थे। जैसे ही दुश्मन देश के सैनिक मृत जवानों की पुष्टि करने के लिए उनके करीब गए, योगेंद्र यादव और उनकी टीम ने दुश्मन पर हमला कर दिया। इस अचानक हुए हमले से कुछ पाकिस्तानी सैनिक जिंदा बच निकले और उन्होंने बंकर में छिपे अपने साथियों को भारतीय सैनिकों के जिंदा होने की खबर पहुंचा दी।

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इसी बीच योगेंद्र यादव अपने साथियों के साथ टाइगर हिल की चोटी के बेहद नजदीक पहुंचने में कामयाब हो गए थे, इस दौरान उनकी बंदूकें पीठ पर बंधी हुई थी और सभी सैनिक रस्सियों की मदद से टाइगर हिल की चोटी तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे।

इसी दौरान पाकिस्तानी सैनिकों को योगेंद्र यादव और उनके साथियों के जिंदा होने की खबर मिल गई, जिसके बाद उन्होंने टाइगर हिल की चोटी के करीब पहुंची घातक प्लाटून को चारों तरफ से घेर लिया था। इसके बाद दुश्मनों ने एक एक करके योगेंद्र यादव और उनके साथ मौजूद 7 जवानों पर ताबड़ तोड़ फायरिंग शुरू कर दी थी, जिसमें सभी सातों जवान शहीद हो गए थे।

उस फायरिंग में योगेंद्र यादव के शरीर में कुल 15 गोलियां लगी थी, लेकिन उनकी सांसें चल रही थी। उन्होंने दुश्मन सैनिकों के सामने आंखें मूंद कर मरने का नाटक किया, जिसे ही पाकिस्तानी सैनिक भारतीय जवानों की लाशों से दूर जाने लगे योगेंद्र यादव ने तुरंत अपनी जेब में रखे ग्रेनाइड से पिन हटाई और उसे पाकिस्तानी सैनिकों के ऊपर फेंक दिया।

उस ग्रेनाइड के हमले से टाइगर हिल पर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए थे, जबकि जिंदा बचे सैनिकों को योगेंद्र यादव ने अपनी राइफल से भुन दिया था। उस वक्त तक योगेंद्र यादव का शरीर पूरी तरह से जख्मी हो गया था, जबकि उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था।

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महज 19 साल की उम्र में मिला था परमवीर चक्र

योगेंद्र यादव ने टाइगर हिल पर दुश्मनों को ढेर कर दिया था, लेकिन उसके बाद वह खुद भी बेहोश होकर एक नाले में जा गिरे। उनका शरीर नाले के पानी के साथ बहते हुए टाइगर हिल से नीचे आ गया, जहां भारतीय सैनिकों की नजर उनके ऊपर पड़ी और उन्हें नाले के सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। जिसके बाद योगेंद्र यादव का महीनों तक इलाज चला और 15 गोलियां खाने के बावजूद भी उनकी जान बच गई थी।

भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध जीत कर एक बार फिर पाकिस्तान को हार का स्वाद चखा दिया था, जबकि भारतीय सैनिकों ने अपनी जान पर खेलकर कारगिल पर भारतीय झंडा लहराने में सफलता हासिल की थी। इस युद्ध के बाद योगेंद्र यादव को महज 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

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योगेंद्र यादव अब तक भारतीय सेना में सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले सैनिक हैं, जिन्हें साल 2021 में Rank of Hony Lieutenant का पद दिया गया था। कारगिल युद्ध में 15 गोलियां खाने के बावजूद भी योगेंद्र यादव ने स्वस्थ होते ही सेना ज्वाइन कर ली थी और आज भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, देश को योगेंद्र यादव पर गर्व है।

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Shivani Bhandari
Shivani Bhandari
सपनों और हक़ीक़त को शब्दों से बयां करती है 'क़लम'!
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